यज्ञ मात्र कर्मकांड की वस्तु नहीं है, अपितु बहुमुखी चिकित्सा पद्धति भी है

पलवल। डॉ.धर्मप्रकाश आर्य ने कहा कि अग्नि में पदार्थ को डालने से उसकी शक्ति क्षेत्रफल और गुणात्मक दृष्टि से हजारों गुणा बढ जाती है। यज्ञ मात्र कर्मकांड की वस्तु नहीं है, अपितु बहुमुखी चिकित्सा पद्धति भी है। पर्यावरण को संतुलित रखने, जल वायु को शुद्ध करने का एक मात्र साधन यज्ञ है। आर्य रविवार को हाउसिंग बोर्ड कालोनी में आयोजित सामवेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर प्रवचन कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि यज्ञ करने के पश्चात उसकी भस्म को खेतों में फैला देना चाहिए, क्योंकि यज्ञ की भस्म कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। यजुर्वेद में भी कहा गया है कि भस्मना पृण अर्थात पृथ्वी को यज्ञ की भस्म से पूरित करना चाहिए। वात, क्षय, दमा, मानसिक, खांसी,आध्यात्म, कैंसर रोगों की चिकित्सा रोगनिवारण औषधियों की आहुति देने से की जा सकती है। वैदिक धर्म प्रचारिणी सभा के प्रवक्ता स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने कहा कि जो व्यक्ति अर्थ और काम में आसक्त हैं, वे धर्म को नहीं जान सकते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, क्षमा, प्रेम, न्याय, इन्द्रिय निग्रह आदि धर्म के लक्षण हैं। यज्ञ में नरेश कुमार ने मुख्य यजमान की भूमिका निभाई। गुरुकुल गोमत के गौरव पावा और पंकज आर्य ने सामवेद के मंत्रों का पाठ किया।

इस मौके पर लालचंद दीक्षित, यशपाल मंगला, रमेश चंद्र आर्य, नरेश मित्तल, नारायण सिंह आर्य, देवीलाल तेवतिया, इंद्रदेव आर्य, मदनमोहन आर्य, महीपाल देशवाल, रामसेवक शर्मा, महेन्द्र सिंह शास्त्री, लीलाराम आर्य, तुलाराम आर्य, एसके चौहान, कमल सिंह पुंडीर, महाशय चंद्रपाल, राजवीर आर्य दुधोला, सुदामा आर्य, प्रिंस पाठक, जगराम तंवर, गुरमेश योगाचार्य, हरिश्चन्द्र आर्य मौजूद थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *