पलवल, सिंचाई विभाग के अन्तर्गत कार्यरत डी.पी.यू. से वारिश ने बताया कि वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूजल भंडार को भरने के लिए भी किया जाता है।

यह कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है, जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है।
पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियां और मेंढक आदि साफ करते रहते थे
और जल पूरे गांव के पशुओं आदि के काम में आता था। जरूरी है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए। घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करने के लिए एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढका जाए तो जल संरक्षण किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि जंगल कटने पर वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती,
जिस कारण भूजल सूखता जाता है। इसलिए वृक्षारोपण जल संग्रहण में बेहद जरूरी भूमिका निभाता है। प्राकृतिक जल संसाधनों में जल के स्तर को बारिश के पानी का संग्रहण बनाए रखता है। यह सडक़ों पर बाढ़ का खतरा और मिट्टी के घिसावट के खतरे को कम करता है। इसके साथ ही जल की गुणवत्ता को सुधारता है।